October 23, 2024

16 साल बाद विदेशों मदद लेने का मजबूर हुआ भारत

मनमोहन सरकार ने विदेशी मदद नही लेने की शुरूआत 2004 में की थी,

मोदी सरकार देशवासियों को विश्व गुरू बनाने का सपना दिखा रही है लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि 2004 में मनमोहन सरकार में आयी सुनामी के दौरान उन्होंने विश्व की तरफ से मदद दिये जाने के मामले पर कहा था कि हमें लगता है कि हम खुद से ही हालात को संभाल लेंगे और लगेगा कि हमें मदद की जरूरत है तब मदद लेगें। गौरतलब है कि भारत ने 1991 में उत्तरकाशी भूकंप, 1993 में लातूर भूंकप , 2001 में गुजरात भूकंप और 200 में बंगाल चक्रवात और 2004 में बिहार बाढ़ के बाद किसी भी तरह की विदेशी मदद नही ली, मोदी सरकार में कोरोना की दूसरी लहर ने इतनी तबाही मचा रही है कि भूटान जैसे छोटे से देश से मदद लेने का मजबूर होना साबित करता है कि मोदी सरकार के द्वारा विगत सालों में जो विकास के दावे किये जा रहे थे वह पूरी तरह से खोखले थे, मोदी सरकार ना कोरोना की दूसरी लहर को ही रोक पाने में कामयाब हो सके और ना ही इस लहर से होने वाले तबाही का मुकाबला करने के लिए जरूरी संसाधन ही उपलब्ध करा सके, देश में ऑक्सीजन की कमी से लेकर दवा की कमी से जूझ रहा है, जिसके विदेशों से सहायता हाथ बढ़ाने को मजबूर होना पड़ा। कुछ दिनों पूर्व तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को दुनिया का फार्मेसी बता रहे थे आज उसी भारत को दूसरे देशों की तरफ मुंह ताकना पड़ रहा है जो साबित करता है कि मोदी सरकार जमीनी सच्चाई से अवगत हुए बगैर ही सिर्फ वाहवाही में ही विश्वास रखती है, वैक्सीन का निर्यात पर भी सवाल उठाये गये कि भारत में वैक्सीन की कमी है तो फिर उसका निर्यात क्यो किया जा रहा है, लेकिन विश्व गुरू बनने की ललक में देश में कोरोना की दूसरी लहर पर ध्यान ही नही दिया। 1 मई से युवाओं के टीकाकरण अभियान नही शुरू होना भी जल्दबांजी में किये गये निर्णय का ही परिणाम है। कोरोना के विदेशों मदद के बीच भी मोदी सरकार सेंट्रल विस्टा के काम पर विराम नही लगाई है, जो इस बात का संकेत है कि कोरोना की ज्यादा मोदी सरकार का ध्यान सेंट्रल विस्टा पर है कि उसका काम समय पर पूरा होना चाहिए। विदेशी मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर आलोचना हो रही है इन आलोचनाओं में युवाओं का टीकाकरण अभियान भी शामिल हो जायेगा कि बगैर किसी तैयारी के इतनी बड़ी घोषणा प्रधानमंत्री कैसे कर देते है।

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