प्रधानमंत्री केा 2015 के प्रवास पर जिस मंदिर की याद नही आयी, उसकी याद बंगाल चुनाव के वक्त आ गयी
विपक्ष आचार संहिता का उल्लंघन बता रहा, बांग्लादेश सरकार को भी देनी पड़ रही सफाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश प्रवास के दौरान मतुआ महासंघ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के ओरकांडी के मंदिर जाने पर बंगाल में राजनीति पारा चढ़ गया है, बंगाल के नदिया, उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले के 40 से ज्यादा विधानसभा में मतुआ समुदाय की मजबूत पकड़ है, विपक्ष इस पूर मामले को आचार संहिता का उल्लंधन करार दे रहा है। गौरतलब हैै कि भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में कैबिनेट की पहली बैठक में सीएए लागू करने की भी वादा मतुआ समुदाय के वोटरों को अपने पक्ष मेंं करने के लिए ही किया है क्योकि आज भी मतुआ समुदाय के बहुत से परिजन बांग्लादेश में रहते है। सीएए के लागू हो जाने से उनके भारत आने का रास्ता खूल जायेगा, साथ ही अवैध रूप से रह रहे मतुआ समुदाय के लोगों पर लटक रही तलवार भी हट जायेगी। लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय का वोट भाजपा के तरह शिफ्ट हो गया था, जिसकी वजह से भाजपा के शांतनु ठाकुर एक लाख वोट से पूर्व सांसद ममता बाला ठाकुर को हराया। ज्ञात हो कि मतुआ समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए नवंबर में गृहमंत्री अमित शाह मतुआ परिवार मेंं लंच भी कर चुके है।
दो दिवसीय प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मतुआ महासंघ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के ओरकाड़ी के मंदिर जाने का मामला बांग्लादेश की राजनीति में भी चर्चा का विषय बना गया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री तक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम की जगहों को लेकर सवालों से दो चार होना पड़ा है। राजनीतिक जानकारों भी बंगाल चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंदिर जाने पर सवाल उठा रहे है कि अगर कोई राजनीतिक उद्देश्य नही था तो 2015 के बांग्लादेश दौरे के समय प्रधानमंत्री ने अपने कार्यक्रम में इस मंदिर को शामिल क्यो नही किया था। जबकि भारत का इस जगह से नाता तो पहले से ही था। गौरतलब है कि मतुआ समुदाय जो पहले लेफ्ट के साथ था इसके बाद यह तृणमुल कांगे्रस के साथ चला गया पिछले लोकसभा चुनाव में यह मतुआ समुदाय का वोट भाजपा की तरह मुड़ गया, अपने इस जनाधार को मजबूत व एकजूट बनाये रखने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश प्रवास के दौरान बंगाल में राजनीतिक हित साधने के लिए मतुआ समुदाय के मंदिर को भी शामिल किया गया है, ताकि लोकसभा की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी यह समुदाय भाजपा के साथ एकजूटता के साथ खड़ा रहे। बंगाल के जिन क्षेत्रों में मतुआ समुदाय की पकड़ मजबूत है वहां पर चौथे व पांचवे चरण में मतदान होने वाले है, तब तक क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह रणनीति अपने वजूद बनाये रख पायेगी? जिसके लिए इतना उठापटक किया गया है, जिसकी वजह से भारत ही नही बांग्लादेश सरकार पर भी सवाल उठ रहे है।
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