सर्वपल्ली राधाकृष्णनन के अलावा और भी थे शिक्षक
5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन का जन्म दिवस है और उनके जन्म दिवस को भारत में शिक्षक दिवस के तौर पर मानते हैं । यह सिलसिला आजादी के बाद से ही चला आ रहा है।
उनके योगदान पर नजर डालें तो ऐसा कही नजर नहीं आता जिसके आधार पर यह कह सकें कि हाँ उनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहिए ।
बस्तर पोस्ट ने इंटरनेट को खंगाल कर ये पता लगाने की कोशिश की कि क्या है उनका योगदान ?
तो जो आंकडे आए आपके सामने हैं :-
1. राष्ट्रपति बनने से पहले वे 1939 से 1948 तक बनारस हिन्दु विष्वविद्यालय के चौथे वाईसचांसलर यानि कुलपति थे।
2 वे 1952 से 1962 तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे ।
3 फिर 1962 से लेकर 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने ।
4 इसके अलावा 1949 से लेकर 1952 तक सोवियत यूनियन में भारत के राजदूत थे।
और थोड़ा झांके तो ये समझ में आता है कि राधाकृष्णन का दर्शन अद्वैत वेदांत पर आधारित था । कोई बड़ी बात नहीं सबकी अपनी फिलोसोफी होती हे।
उन्होंने इस परंपरा को एक
समकालीन समझ के लिए पुनर्व्याख्या करते हुए उन्होंने हिंदू धर्म का बचाव किया था जिसे उन्होंने अनौपचारिक पश्चिमी आलोचना कहा ।
समकालीन हिंदू पहचान के निर्माण में योगदान दिया। वह भारत और पश्चिम दोनों में हिंदू धर्म की समझ को आकार देने में प्रभावशाली रहे हैं। और भारत और पश्चिम के बीच एक सेतु-निर्माता के रूप में ख्याति अर्जित की। हांलांकि इससे पहले 1893 में स्वामी विवकानंद के माध्यम से शिकागो सम्मेलन में अमेरिका और अन्य पष्चिमी देश हिन्दुधर्म की विशालता के बारे में जान चुके थे।
5 राधाकृष्णन नव-वेदांत के सबसे प्रमुख प्रवक्ताओं में से एक थे।
बस और कुछ नहीं मिलता ।
कुल मिला कर यह समझ में आता है कि शिक्षाजगत के नोबल प्रोफेशन को छोड़कर डॉ सर्व पल्ली राधाकृष्णनन ने राजनीति में प्रवेश लिया था। कारण चाहे जो भी हो ।
शिक्षकदिवस मनाने के कारणों के पीछे उनका नाम कैसे जुड़ा इसके बारे में किवदंती ही मिलती है जिसका उल्लेख करना जरूरी नहीं है । मगर इसी देश ने ऐसे शिक्षकों को जन्म दिया है जिन्होंने देश की दशा और दिशा बदल दी । वे युगपुरूष कहलाए।
इनका जन्म दिवस क्यों नहीं ?
इसमें एक नाम आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य (350- 275 ई.पू.) जिन्होंने अर्थ शास्त्र जैसे ग्रंथ की रचना की और यह ग्रंथ राजनीति अर्थनीति का ऐसा उदाहरण दिया जो आज भी प्रासंगिक हैं ।
चाणक्य एक शिक्षक थे जिन्होंने चंद्रगुप्त (321-297 ई.पू.)को खड़ा किया और मार्य साम्राज्य (322-185 ई.पू.) की नींव रखी ।
अंखड भारत की सोच सबसे पहले चाणक्य ने जाहिर की थी । यह उनका ही सपना था । मौर्य शासक चंद्रगुप्त की मदद से और वे इस सपने को साकर करने में सफल हुए थे । दूसरी तरफ युग पुरूष ईष्वरचंद विद्यासागर थे,
ईष्वरचंद विद्यासागर
इनके योगदान पर भी गौर करते हैं,
अति निर्धन ब्राम्हण परिवार में इनका जन्म हुआ था। तीक्ष्णबुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि ही विरासत में प्रदान की थी।
1 १८४१ में विद्यासमाप्ति पर फोर्ट विलियम कालेज में पचास रुपए मासिक पर
2 मुख्य पण्डित पद पर नियुक्ति मिली। तभी वद्यासागर-उपाधि से विभूषित हुए।
योगदानरू-सुधारक के रूप में इन्हें राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है।
3 इन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए आन्दोलन किया और सन 1856 में इस आशय का अधिनियम पारित कराया।
4 1856-60 के मध्य इन्होने 25 विधवाओं का पुनर्विवाह कराया।
इन्होने नारी शिक्षा के लिए भी प्रयास किए और इसी क्रम में बैठुने स्कूल की स्थापना की तथा कुल 35 स्कूल खुलवाए।आरम्भिक आर्थिक संकटों ने उन्हें कृपण प्रकृति (कंजूस) की अपेक्षा दयासागर बनाया।
5 विद्यार्थी जीवन में भी इन्होंने अनेक विद्यार्थियों की सहायता की।
समर्थ होने पर बीसों निर्धन विद्यार्थियों, सैकड़ों निस्सहाय विधवाओं, तथा अनेकानेक व्यक्तियों को अर्थकष्ट से उबारा। वस्तुतः उच्चतम स्थानों में सम्मान पाकर भी उन्हें वास्तविक सुख निर्धनसेवा में ही मिला।
5 शिक्षा के क्षेत्र में वे स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे। बेथ्यून की सहायता से गर्ल्स स्कूल की स्थापना की जिसके संचालन का भार उनपर था।
6 उन्होंने अपने ही व्यय से मेट्रोपोलिस कालेज की स्थापना की।
7 साथ ही अनेक सहायताप्राप्त स्कूलों की भी स्थापना कराई। संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की। इसके अतिरिक्त शिक्षाप्रणाली में अनेक सुधार किए।
समाजसुधार उनका प्रिय क्षेत्र था, जिसमें उन्हें कट्टरपंथियों का तीव्र विरोध सहना पड़ा, प्राणभय तक आ बना।
8 वे विधवाविवाह के प्रबल समर्थक थे। शास्त्रीय प्रमाणों से उन्होंने विधवाविवाह को बैध प्रमाणित किया।
9 पुनर्विवाहित विधवाओं के पुत्रों को १८६५ के एक्ट द्वारा वैध घोषित करवाया। अपने पुत्र का विवाह विधवा से ही किया।
10 संस्कृत कालेज
में अब तक केवल ब्राह्मण और वैद्य ही विद्योपार्जन कर सकते थे, अपने प्रयत्नों से उन्होंने समस्त हिन्दुओं के लिए विद्याध्ययन के द्वार खुलवाए।
वैसे 5 अक्टूबर को अंतराष्ट्रीय शिक्षक दिवस है । 1994 में इसकी शुरूआत हुई थी । 5 अक्टूबर 1966 को पेरिस में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था, इस कॉन्फ्रेंस में शिक्षकों के अधिकारी, जिम्मेदारी समेत शिक्षकों से संबंधित कई मुद्दों पर यूनेस्को/आईएलओ की सिफारिशों को यूनेस्को ने अपनाया था । इसी को याद करते हुए 1994 में विश्व शिक्षक दिवस की शुरूआत हुई ।
गुरू द्रोणाचार्य, स्वामी विवेकानन्द , गुरूगोविंद सिंह इत्यादि ऐसे कई गुरू है जिनके नाम पर शिक्षक दिवस मनाए जाएं तो बात समझ में आती है।
ऐसे में आज जब नाम ,योजनाओं और जगहों को बदलने का दौर है , बीजेपी क्यों इस दिशा में नही सोच रही है ?
……..तो फिर क्यों भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा राधाकृष्णनन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मनाए जाए.. ?