भाजपा की अंदरूनी गुटबांजी से केंद्रिय नेतृत्व भी है परेशान
बंगाल में भाजपा विधानसभा चुनाव में दो सौ पार का नारा तो लगा रही है लेकिन जमीनी हालत यह है कि कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण पार्टी को टिकट देने के बाद भी प्रत्याशी को बदलने पर मजबूर होना पड़ा रहा है। पूर्वी वर्धमान की गलसी सीट से भाजपा ने तपन बागड़ी को उम्मीदवार बनाया था, जब वह पूरी तैयारी के साथ नामांकन भरने जा रहे थे तो पार्टी ने उन्हें नामांकन नही भरने का निर्देश दिया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि टिकट वितरण को लेकर भाजपा के अंदर ही घमासान मचा हुआ है, ऐसे हालातों में बंगाल मेें सत्ता का सपना हकीकत में कैसे बदल सकता है?
बंगाल के पहले चरण के 30 सीटों में 26 सीट जीतने का दावा तो गृहमंत्री अमित शाह ने करके कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने का प्रयास जरूर किया है कि भाजपा सत्ता में आ रही है लेकिन जिस तरह से पार्टी के अंदर ही घमासान मचा हुआ है उससे यही लगता है कि सिर्फ मांइडगेम से बंगाल में भाजपा की नैय्या नही पार होने वाली है। वर्धमान के गलसी सीट से भाजपा ने कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद भी तपन बागड़ी को टिकट दे दिया, जब वह अपने समर्थकों के साथ नामांकन फार्म जमा करने जा रहे थे तब उन्हें पार्टी कार्यालय से निर्देश आया कि फार्म ना जमा करे। पार्टी ने इस सीट पर प्रत्याशी बदलने का फैसला किया है, बताया जाता है कि बागड़ी पर छेड़छाड़ का मामला दर्ज होने के बाद भी पार्टी ने उन्हें टिकट दी थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस तरह से अंतिम समय में भाजपा ने प्रत्याशी बलदने का फैसला लिया वह साबित करता है कि भाजपा इस सीट पर बगैर चुनाव लड़े ही यहां से हार मान ली है, जिसका असर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी पड़ सकता है। बंगाल में भाजपा के अंदर ही खीचतान मची हुई है उससे केंद्रिय नेतृत्व को भी इस बात का एहसास हो चुका है कि सत्ता तो दूर की बात अब सम्मान जनक स्थिति ही मिल जाये, क्योकि बंगाल में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है, बंगाल की हर सीधे तौर पर मोदी सरकार की हार ही मानी जायेगी इसलिए बंगाल की सत्ता भले ना मिले लेकिन मोदी सरकार का सम्मान कायम रहे, क्योकि किसान आंदोलन के नेता भी खूल कर भाजपा को हराने की अपील बंगाल व असम की जनता से कर चुके है।
भाजपा चाणक्य की रणनीति में सेंधमारी, भाजपा कार्यकर्ता ही कर रहे