किसानों के तर्ज पर पीडि़त पक्ष भी अपनी लड़ाई स्वयं लड़ते तो सरकार की परेशानियां जरूर बढ़ती
प्रधानमंत्री आवास योजना दिलाने के नाम पर संजय गांधी वार्ड की पार्षद कोमल सेना के द्वारा पैसा उगाही के मामले पर विपक्ष द्वारा राजनीति लाभ लेने के लिए पीडि़त पक्ष के साथ एक ही मंच साझा करके इस पूरे मामले का राजनीतिकरण कर दिये जाने के कारण पीडि़त पक्ष को अन्य सामाजिक संगठनों का सहयोग अभी तक नही मिल सका ? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योकि कृषि बिल को लेकर किसानों द्वारा किये गये आंदोलन से राजनीतिक दलों को दूर रखा गया जिसके चलते मोदी सरकार इस आंदोलन का हर कोशिश के बाद भी राजनीतिकरण नही कर पायी। किसानों ने अपना मंच किसी भी राजनीतिक दल के साथ साझा नही किया।
प्रधानमंत्री आवास दिलाने के नाम पर पार्षद कोमल सेना के द्वारा की गयी उगाही का मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय जरूर बना हुआ है, लेकिन इसके बाद भी सरकार इस मामले को गंभीरता से नही ले रही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पीडि़त पक्ष भाजपाईयों के साथ खड़े होकर इस पूरे मामले का राजनीतिकरण कर देने से यह मामला पहले दिन ही कमजोर पड़ गया। पीडि़त पक्षों को किसान आंदोलन से सबक लेते हुए अपने इंसाफ की लड़ाई खुद लड़नी चाहिए थी , जनता अपनी लड़ाई राजनीतिक दल के पीछे खड़े होकर लड़ने से सरकारों, आंदोलन का राजनीतिकरण करने में देरी नही लगती है, जैसा इस मुहिम के साथ हो रहा है। मोदी सरकार ने किसान आंदोलन का राजनीतिकरण करने के लिए फांडिग के साथ ही विपक्ष के हिस्सेदारी का आरोप लगा कर किसान आंदोलन को एक राजनीतिक आंदोलन में तब्दिल करने की कोशिश की थी । किसानों ने अपने आंदोलन से राजनीतिक दलों को दूर रख कर स्पष्ट कर दिया कि यह राजनीतिक आंदोलन नही किसानों का आंदोलन है, जिसके चलते अंतत: मोदी सरकार को झुकने को मजबूर होना पड़ा। किसान आंदोलन को प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में लोगों ने समर्थन भी किया। प्रधानमंत्री आवास योजना में पैसा उगाही का मामला पूरी तरह से एक राजनीतिक आंदोलन में तब्दिल हो जाने से कही ना कही पीडि़त पक्षों की लड़ाई कमजोर होती दिखाई दे रही है। जिस तरह से भाजपा ने इस मामले का राजनीतिक लाभ लेने के लिए पीडि़त पक्षों को भाजपा कार्यालय बुलाने के साथ ही धरना स्थल पर भी भाजपाई की उपस्थिति के अलावा भाजपा के बड़े नेता पीडि़त पक्षों को मिला रहे है वह कही ना कही इस पूरी लड़ाई को एक राजनीतिक लड़ाई में तब्दिल कर दिया है। जिसके चलते पीडि़त पक्षों को आम जनता व सामाजिक संगठनों का सहयोग नही मिलता दिखाई दे रहा है।
राजनीतिक आंदोलन ना बनने दें
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सत्ता पक्ष किसी भी आंदोलन को कमजोर करने के लिए उसका राजनीतिकरण करने की कोशिश करती है। ताकि लड़ाई सरकार और आम जनता के बीच ना होकर सरकार और विपक्ष के बीच तब्दिल हो जाये। विपक्ष का काम ही सरकार की बुराई करना है इसलिए सरकार उनकी बातोंं को वैसी गंभीरता से नही लेती है, जैसे की आम जनता की मुद्दे को लेने को मजबूर होती है, क्योकि आम जनता की लड़ाई में सरकार को डर रहता है कि अन्य जनता भी पीडि़त पक्ष के साथ खड़ा हो गया तो उसकी मुश्किलें बढ़ जायेगी। प्रधानमंत्री आवास योजना दिलाने के नाम पर की गयी पैसा उगाही का मामला पीडि़त पक्ष की जल्दबांजी के कारण इसका राजनीतिकरण हो गया है जिसके चलते यह अब पीडि़त पक्ष व सरकार की ना होकर कांग्रेस व भाजपा में तब्दिल हो गयी है।