October 23, 2024

ब्रिटिश शासन में बस्तर

आज नगरनार के निजीकरण और हीराखण्ड एक्सप्रेस को लेकर जाने कितनी बार लिखा-पढ़ी की कार्यवाही हो चुकी है । मोदी सरकार किसी की सुनने पर राजी नहीं है। किसान आंदोलन इसका जीता जगता उदाहरण है। लगभग 250 वर्षों के ब्रिटिश हुकुमत के बाद इस तरह के सुशासन की उम्मीद तो नहीं थी।

Heeralal Shukl's book on Bastar

हाल में डाॅक्टर हीरालाल शुक्ल की किताब बस्तर का मुक्ति संगा्रम(1774-1910) पढ़ा उसमें लिखित एक घटना पढ़कर लगा कि ब्रिटिश जमाने में कितनी ईमानदारी से काम होता था। चूंकि मै बस्तर का रहने वाला हूँ इसीलिए मै यह बात बस्तर के परिपेक्ष्य यह बात कहता हूँ।

क्या है वह घटना

सन् 1837 में उड़िसा और मद्रास प्रेसीडेंसी के अधिकारियों ने ब्रिटिश सरकार को सूचना दी कि बस्तर के दंतेवाड़ा में शंकनी डकनी नदी के संगम पर नरबलि प्रचलित है। इसके बाद ब्रिटिष प्रशासन हरकत में आई और मराठों के अधीन बस्तर को इसकी जांच करने को कहा

मराठा शासक ने बस्तर के दीवान लालदलगंजन सिंह को बुलाया और पूछताछ की बातचीत में बस्तर दीवान का संतोषप्रद जवाब नहीं मिलने से सीधे सैनिकों की एक टुकड़ी दंतेवाड़ा मंदिर के आसपास तैनात कर दिया गया और ये सुनिश्चित किया गया कि किसी प्रकार की मानवबलि की घटना न हो सके । फिर मराठों ने तात्कालीन राजा भूपाल देव से पूछा गया वे भी इस पर अनभिज्ञ दिखे तो । सीधे उन्हें राजगद्दी से हाथ धोना पड़ा। और पूरी बात की पड़ताल के लिए अंग्रेज अधिकारी मैकफर्सन को सन 1852 में बस्तर आना पड़ा। वो भी उस जमाने में जब आज की तरह साधन नहीं । जांच में ये घटना सही पायी गई और मैकफर्सन ने अपनी रिपोर्ट  (Colonel Machpherson, Journal of Royal Asiatic Society, Calcutta, 1852 Vol. XIII P. 243) में लिखा है ।

इसमें ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की क्या बात है?

  • सबसे पहली बात तो यह है कि इसमें शिकायत पर कार्यवाही की गई
    मराठो को काम सौंपा गया उन्होने पूरी ईमानदारी से जांच की
  • दीवान की जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर एक सैनिक टुकड़ी भेजी।
  • राजा से माकूल जवाब न मिलने पर राजा को पद से हटाया

और रिपोर्ट की तस्दीक के लिए अंग्रेज अफसर बस्तर आया ।और नरबलि का अंत हुआ

ये बिन्दुएं इस बात की तरफ ईशारा करती है कि पूरी प्रक्रिया में सबने अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी और कर्तव्य समझ कर किया।

आज ये होता है।

आज कार्यवाही और शिकायतों पर चर्चा होती है । आयोग बैठता है । जांच होती है सब कुछ होता है पर नतीजा कुछ नहीं होता ।
कुछ घटनाएं तो मुझे जुबानी याद है उन्हें ही यहां उल्लेख करता जो अब तक                सुशासन में फैसले का इंतेजार कर रहें है ।
1. ताड़मेटला की घटना
2. झीरम घाट की घटना
3. जगलदपुर पुल टूटने की घटना
4. हीराखण्ड एक्सप्रेस का बस्तर से अलग होना
5. जोरा नाला विवाद
इत्यादि ये सब आज भी अपने फैसले का इंतेजार कर रहें है।
चाहे कोई कुछ भी कहे ये घटनाएं अहम और महत्वपूर्ण हैं कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।

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