12 जनवरी 2021 को सीबीएसई ने ऐसा साक्षरता का सर्वे कराया था जिसमें देश के 733 जिले के 1 लाख 24 हजार निजी और शासकीय स्कूलों भाग लिया है। 29 लाख विद्यार्थी शामिल हुए । जो 3 5 8 10 कक्षाओं के थे । और इस सर्वेक्षण अभियान में जाहिर हैं शिक्षा विभाग पुरी मुस्तैदी से लगा रहा । इस परीक्षा के लिए निजी स्कूलों के शिक्षकों की भी नहीं बक्षा गया । जिन्हें 3900 रूपए के मानदेय का लालच देकर कभी प्रशिक्षण के नाम पर लम्बी दूरी तक दौड़ाया गया ।
सबसे खास बात यह कि राष्ट्रीय सर्वे परीक्षा के एक महिने से ज्यादा का समय बीत चुका है । वह कथित मानदेय शिक्षकों को अब तक नहीं मिल पाया है । शिक्षक अपने खातों की नियमित जांच कर रहें है। मगर मायूसी ही उनके हाथ लग रही है।
कोरोना के समय में एक ओर जहां निजी स्कूल के शिक्षकों को वेतन नहीं मिला । मिला तो भी आधी तनख्वाह में गुजरना पड़ा । ऐसे में एनएएस का इतना बड़ा छलावा क्या संवैधानिक व्यवस्थाओं की मजाक नहीं है। टीचर्स कहते हैं आखिर तीन दिनों तक मेहनत की है। एक दिन प्रशिक्षण में गुजरे तो एक दिन सीलबंद लिफाफा लेकर अपने रिस्क पर उसे रखने में
क्या थी यह परीक्षा ?
कोरोना दौर में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का स्तर परखने के लिए सीबीएसई को क्या सूझी कि उसने नेश्नल अचिवमेंट सर्वे नामक एक परीक्षा आयोजित की थी यह परीक्षा कक्षा 3, 5, 8 और 10 के बच्चों के लिए कराई गई थी । इसके लिए जिला स्तर पर एक कोऑर्डिनेटर बनाया गया जिसके जिम्मेदारी थी कि पर्यवेक्षकों को नियुक्ति करे जो जिले के सीबीएसई या इससे सम्बद्ध विद्यालय के पीजीटी,टीजीटी और पीआरटी थे । यह आयोजन इतना बड़ा था कि पूरे देश में चलाया गया । शिक्षा विभाग का पूरा अमला तीन दिनों तक यही काम करता रहा। इसके लिए बकायदा एक योजनाबद्ध तरीके से काम हुआ ठीक उसी तरह जैसे लोकसभा या विधानसभा चुनावों के दौरान होता है। इसमें एक नोडल ऑफिसर फिल्ड इंनवेस्टिगेटर, जिला स्तर पर एक समन्वयक इत्यादि थे और पर्यवेक्षक थे। 30 अक्टूबर 2021 को शिक्षा अधिकारियों को आदेश क्रमांक 3570/एनएएस2021जारी हुआ जिसे एससीईआरटी छग रायपुर के संचालक राजेश राणा ने जारी किया । जिसमें उक्त बातें स्पष्टतः लिखी गई थीं ।
इसी तरह एक आदेश मनोजकुमार श्रीवास्तव जो एनएएस सेल सीबीएसई के प्रमुख द्वारा जारी हुआ था। 15 सितंबर को ही जारी इस आदेश में सीबीएसई से संबद्ध सभी स्कूलों को एनएएस परीक्षा करवाने के संबध नियमावली इत्यादि थी ।
एक फिल्ड इंनवेस्टिगेटर थे जो पयवेक्षक के साथ या पर्यवेक्षक इनके साथ कोआर्डिनेट करते थे ।
फिर इसमें बीआरसी, सीएसी और बीईओ की ये जिम्मेदारी थी कि वे दूरस्थ अंचलों में परीक्षा के लिए आए फिल्ड इंनवेस्टीगेटर्स के लिए स्कूल के पास आवास इत्यादि की व्यस्था करें । इत्यादि !
200 से 400 के आसपास बस्तर जिले में पर्यवेक्षक और इतने ही फिल्ड इनवेस्टीगेटर थे।
सबसे खास बात सीलबंध प्रश्न पत्रों के पैकेट को सुरक्षित गंतव्य तक पहुँचाने का जिम्मेदारी थी डिस्ट्रीक्ट नोडल आफिसर और District Education Officer की मगर शासकीय कार्य में जैसा कि होता है सिर्फ कागजों में काम होता है । हकीकत में 10 फीसदी ही काम होता है। ऑबजर्वर ही लेकर गए।
यानि नवम्बर में होने वाली परीक्षा के संबध में तैयारी सितंबर से पहले ही हो चुकी थी। इतने योजनाबद्ध तरीके से की गई इस परीक्षा की नियमावली में कही भी यह जिक्र नहीं था कि निजी स्कूलों के शिक्षक जो पहले ही कोरोना के कारण आर्थिक परेषानी झेल रहें है- उन्हें कब तक भुगतान किया जाएगा जो जारी आदेश में 3900 रूपए है। परीक्षा के तीन दिनों पूर्व ही ऑन लाईन शिक्षकों ने अपना बैंक डिटेल दे दिया था।
बड़ा सवाल क्या यह भी सीबीएसई का एक छलावा था बच्चों, शिक्षकों और व्यवस्था को परेषान करने का । अगर नहीं तो कम से कम रिजल्ट की घोषणा ही कर देते ।
खैर फिलहाल निजी स्कूल के टीचर्स अपने बैंक अकाउण्ट हर दिन चेक कर रहें हैं कहीं 3900 तो नहीं आ गया! बहरहाल बस्तर जिले के नोडल आफिसर नाग ने बताया :- “प्रकिया में समय लग रहा है मुंगेली जिले में सभी को प्राप्त हो चुका है । बस्तर में दिसंबर अंत तक पैसा आ जाएगा।” तब तक इंतेजार करते हैं ।
मगर बड़ा सवाल यह है कि आज के डिजीटल युग में सीबीएसई या एनएएस को कोरोना की बदौलत मंदी झेल रहें शिक्षकों को मेहनताना देने में इतनी देर क्यों लग रही है ?