October 23, 2024

राष्ट्रवादी पार्टी का समर्थन करना क्षेत्रीय पार्टियों को भारी पड़ा

वीआईपी पार्टी का अस्तित्व हुआ खत्म बिहार से,

राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद करने के लिए बिहार में एनडीए का हिस्सा रहे विकासशील इंसान पार्टी के तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो जाने से इस पार्टी का अस्तित्व की बिहार में खत्म हो गया है और इस पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी को इस बदलाव के चलते अपने मंत्री पद भी खोना पड़ गया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिस तरह उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव मेंं बसपा प्रमुख मायावती सपा को हराने के लिए अपनी पार्टी को ही दाव में लगा दिया, विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद स्पष्ट हो गया कि यूपी में बसपा अपनी अंतिम सांसे गिन रही है, क्योकि बसपा का वोट भाजपा में शि$फट हो गया है। वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी ने भी राष्ट्रहित को अपनी प्राथमिकता में रखते हुए एनडीए का समर्थन करके अपनी पार्टी को खत्म कर दिया हेै, जिस तरह से राष्ट्रहित के मुद्देनजर इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियो का बंटाधार हो गया है उसी तरह ही राष्ट्रहित के नारे के सहारे देश का मोदी सरकार बंटाधार तो नही कर रही है? यह सवाल इसलिए गहराने लगा है कि क्योकि मोदी सरकार व्यवस्था सुधारने की जगह सरकारी संपत्तियों को बेचने का काम तेजी से कर रही है। मंहगाई अपने चरम पर हेै लेकिन राष्ट्रवाद के नारे के चलते मंहगाई की समस्या भी सुनियोजित तरीके से खत्म की जा चुकी है। बेरोजगारी, चीन द्वारा भारतीय सीमा पर अतिक्रमण जैसे विषयों पर कोई भी चर्चा नही करना चाहता है।

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यूपी में बसपा भी खत्म होने की कगार पर पहुंची

राष्ट्रवाद के मद्देनजर भाजपा को समर्थन करना बसपा के साथ ही वीआईपी पार्टी को बहुत मंहगा पड़ा। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में मायावती की भाजपा की करीबी के चलते विधानसभा चुनाव में इस पार्टी का पूरी तरह से सफाया हो गया है, वही दूसरी तरफ बसपा का कोर वोटर भी भाजपा की तरह चले जाने से इस पार्टी के अस्तित्व पर भी संकट गहराने लगा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की नजर बसपा के बचे कूचे वोटरों पर होगी? उसी तरह ही बिहार में एनडीए का हिस्सा रहे वीआईपी पार्टी का भी अस्तित्व खत्म हो गया है। पार्टी के तीनों विधायक स्वर्णा सिंह, मिश्रीलाल, और राजू कुमार सिंह भाजपा में शामिल हो जाने के कारण वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी को मंत्री पद से बर्खास्त करने की मांग राज्यपाल से सरकार ने कर दी है। जिस तरह इन श्रेत्रीय पार्टियो को राष्ट्रहित मेंं भाजपा के साथ खड़ा होने के कारण पार्टी खत्म होने के कगार पर पहुंच गयी है, क्या उसी तरह ही राष्ट्रहित में भाजपा का साथ देना भी देशवासियों के लिए परेशानी का सबब तो नही बन जायेगा? क्योकि आठ सालों से केंद्र में मोदी सरकार होने के बाद भी कश्मीर पंडितों की वापसी का रास्ता बनाने की जगह द कश्मीर फाइल्स के प्रचार प्रसार में जूटी नजर आ रही है, फिल्म कश्मीर फाइल्स से कश्मीर पंडितों की वापसी का रास्ता खुलता है, इस पर भाजपाई कुछ भी नही बोल रहे है। उसी तरह ही बेरोजगारी व मंहगाई भी अपने चरम पर है लेकिन राष्ट्र पहले के नारे के कारण यह मुद्दा भी दम तोड़ता दिखाई दे रहा है। जिस तरह से समय गुजर जाने के बाद बसपा और वीआईई पार्टी को राष्ट्रहित के मद्देनजर भाजपा का समर्थन करना भारी पड़ा, कही वैसे ही देशवासियों को भाजपा के राष्ट्र पहले के लुभावने नारा भारी ना पड़ जाये।

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