सारकेगुड़ा घटना में मारे गये ग्रामीणों को याद किया गया
नौ साल पहले 28 जून 2012 को सारकेगुड़ा में पुलिस फायरिंग में मारे गये 17 लोगों को ग्रामीणों द्वारा श्रद्वांजलि देने के साथ ही जॉच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है। गौरतलब है कि सिलगेर कैंप में भी पुलिस की फायरिंग में तीन ग्रामीणों की मौत के दोषियों को सजा दिलाने के लिए ग्रामीणों ने आंदोलन किया, इस मामले की भी जॉच हो रही है। सवाल यह है कि इसकी भी जॉच रिपोर्र्ट सारकेगुड़ा की तरह ठस्ते बस्ते में डाल तो नही दी जायेगी।
सारगेगुड़ा घटना भाजपा के सरकार में हुई थी विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार को इस घटना के माध्यम से घेरने का प्रयास भी किया था, जबकि तत्कालीन सरकार ने इस मामले की न्यायिक जांच का गठन किया, लेकिन 9 साल बाद भी इस मामले की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नही होने से सवाल उठता है कि क्या सरकार जांच दलों का गठन घटनाओं को दबाने के लिए करती है। वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है इसके बाद भी जांच रिपोर्ट का सार्वजनिक नही होना राजनीतिक जानकारों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है, मोदी सरकार की तरह काला धन पर राजनीतिक लाभ उठाने के बाद कालाधन के मुद्दे का ही डस्टबीन में डाल दिया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ग्र्रामीणों ने सारकेगुड़ा में मारे गये निर्देष ग्रामीणों को श्रद्वांजलि के माध्यम से सिलगेर में मारे गये तीन ग्रामीणों की मौत का मामले को फिर से जिंदा कर दिया है, क्योकि इस मामले की भी जांच प्रशासन के द्वारा करायी जा रही है लेकिन दोषियों को सजा मिलेगी? जिस तरह से जॉच रिपोर्ट को दबाया जा रहा है उससे जांच की क्या उपयोगिता पर ही सवाल उठने लगे हैै, क्योकि जांच जिस घटना की सत्यता तक पहुंचने के लिए करायी गयी है वह जांच रिपोर्ट को सरकारें सार्वजनिक करके दोषियों को सजा देकर आम जनता के बीच विश्वास कायम करने का प्रयास क्यो नही करती है। सारकेगुड़ा में पुलिस के नाकाबंदी के बाद भी हजारों ग्रामीण जिस तरह से जमा हुए वह साबित करता है कि पुलिस फायरिंग में मारे गये निर्देष ग्रामीणों के दोषियों को सजा दिलाने की आवाज बुलंद हो रही है।