October 23, 2024

सिलगेर विवाद गायब रहा मानसून सत्र से

सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों में सिलगेर मामले पर आम सहमति बनी , जिसकी वजह से यह मुद्दा गायब कर दिया गया
आदिवासी नेताओं को भी आदिवासियों से ज्यादा पार्टी की चिंता

छत्तीसगढ़ विधानसभा में दक्षिण बस्तर में सिंगरेल कैंप में हुए गोलीबारी में 3 आदिवासियों की मौत का मामला ना ही सत्ता पक्ष के विधायकों के द्वारा उठाया गया है और ना ही विपक्ष के विधायको के द्वारा। जबकि पुलिस फायरिंग में मारे गये ग्रामीणों की इंसाफ दिलाने के लिए आदिवासियों के लम्बे समय तक आंदोलन करने के साथ ही सत्तारूढ़ कांग्रेस दल व भाजपा द्वारा जांच दल का गठन किया गया था। गौरतलब है कि बस्तर में पुलिस कैंप को खोलने के लेकर ग्रामीणो में विरोध के स्वर बुलंद होने के बाद भी मानसून सत्र में बस्तर के धर्मातंरण का मुद्दा को विपक्ष ने उठाया लेकिन सिलगेर कैंप विवाद का मुद्दा क्यो गायब हो गया, जबकि सिंगरेल विवाद के बाद पुलिस व ग्रामीणों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है।
सिलगेर खोलने के विरोध में ग्रामीणों और पुलिस के बीच हुई झड़प में तीन ग्रामीणों की मौत हो गयी, जिसे पुलिस प्रशासन ने नक्सली बताया, सर्व आदिवासी समाज के जांच दल ने मारे गये लोगों को ग्रामीण बताया। मृतकों को इंसाफ दिलाने के लिए ग्रामीणों ने लम्बा आंदोलन किया जिसके चलते भाजपा के आदिवासी नेता नंदकुमार साय बस्तर पहुंच कर कैंप खोलने के लिए ग्राम सभा में सहमति नही लेने का आरोप लगते हुए कहा था कि सिलगेर में कैंप खोलने की जगह स्कूल स्वास्थ्य सुविधाएं व आंगनबाड़ी केंद्र खोले जाने चाहिए थे, आदिवासी समाज ने भी कैंप खोलने के लिए ग्राम सभा की अनुमति नही होने की आरोप लगाते हुए कहा कि बस्तर में पांचवी अनुसूची के साथ ही पेसा कानून लागू है। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर जांच दल का गठन किया लेकिन यह स्पष्ट नही हो सका कि मारे गये लोग ग्रामीण थे या नक्सली। भाजपा ने भी जांच दल का गठन किया लेकिन अभी तक रिपोर्ट सार्वजनिक नही हो सकी है। वही सिलगेर कैंप में अपनी जमीन खोने वाली लक्ष्मी ने पत्रवार्ता करके बताया कि कैंप में जीवन यापन का एक मात्र सहारा जमीनी भी छिन ली है। सवाल यह हेै कि सिलगेर आंदोलन बस्तर में आदिवासी राजनीति को नयी पहचान दी लेकिन विधानसभा के मानसून सत्र में सिलगेर मुद्दा पूरी तरह से गायब रहा , जबकि बस्तर का धर्मातंरण का मुद्दा जरूर विधानसभा में जगह बनाने में सफल रहा। मानसून सत्र में हाथियों से मौत का मामला भी उठा लेकिन सिंगरेल कैंप के खिलाफ ग्रामीणों पर गोलीबारी का अहम मुद्दा को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाना साबित करता है कि सिलगेेर विवाद पर ना तो सत्ता पक्ष ही गंभीर है और ना विपक्ष। जो सिलगेर विवाद के शुरूआती दिनों से ही नजर आ रहा था, भाजपा ने खानापूर्ति करने के लिए एक पखवाड़े बाद जांच दल का गठन किया वही कांग्रेस के जांच दल यह नही बता सका कि मारे गये लोग ग्रामीण थे या नक्सली। सरकार के द्वारा जांच दल की रिपोर्ट कब आयेगी? क्योकि राजनीतिक गलियारों में किसी भी मामले को ठंडे बस्ते में डालने के लिए जांच दल का गठन करने की एक परंपरा विकसित हो गयी है।

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