एक देश एक चुनाव होता तो क्या कृषि बिल या देवस्थानम अधिनियम बिल वापस लेती सरकार?
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि बिल वापस लेने का फैसला लिया उसी तरह ही उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने देवस्थानम अधिनियम को वापस लेने का फैसला लेकर नाराज ब्राम्हणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, ब्राम्हणों ने इस विवादित बिल के खिलाफ किसानों के तरह ही लम्बा आंदोलन किया है। विधानसभा चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी का विवादित बिल वापसी का फैसले का कितना लाभ होगा यह तो चुनाव के बाद ही पता लग पायेगा, लेकिन भाजपा सरकार एक देश एक चुनाव का नारा बुलंद करती है, लेकिन अगर विधानसभा चुनाव नही होते तो क्या कृषि बिल और देवस्थानम अधिनियम बिल की वापसी होगी? यह ऐसा सवाल है जिस पर मंथन करने की जरूरत है जो एक देश एक चुनाव की बात को सही बताने की कोशिश करते है।
कृषि बिल वापसी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तर्ज पर ही उत्तराखंड में विवादित देवस्थान अधिनियम वापस लेने का फैसला करके पुष्कर सिंह धामी ने नाराज ब्राम्हण को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। गौरतलब है कि देवस्थानम बोर्ड के भंग करने का फैसले के बाद ब्राम्हणों ने भाजपा सरकार और उनके मुखिया रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत के पुतले फूंके थे। दो सालों तक यह आंदोलन चलने से किसान आंदोलन की तरह ही भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही थी हरिद्वार कुंभ में साधु-संतो के जमावाड़े से पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। तीरथसिंह रावत ने देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार करने का ऐलान किया था, लेकिन वापस लेने से पूर्व ही उनकी कुृर्सी चली गयी। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ब्राम्हणों की नाराजगी दूर करने के लिए पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ दौरे के एक दिन पहले तीर्थ पुरोहितों को केदारनाथ धाम में दिये गये वचन के तहत 30 नवंबर को देवस्थान बोर्ड को भंग करने का ऐलान करने के साथ ही शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही इस विवादित बिल को वापस लेने की घोषणा की। विवादित बिल वापसी के बाद क्या नाराज ब्राम्हण फिर से भाजपा के पाले में चले जायेगें? जिसके लिए उन्होंने लम्बी लड़ाई लड़ी है।
हार के डर से बिल वापस लिया -हरीश रावत
विवादित बिल वापसी पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में हार के डर से डरी हुई भाजपा की सरकार ने आनन- फानन में देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का फैसला लिया है। राज्य की जनता भाजपा की असलियत को पूरी तरह से समझ गई है कि धर्म विरोधी है। जिस हिंदू धर्म का ढिंढोरा पीट कर भाजपा सत्ता में आयी थी उस धर्म की सदियों से चली आ रही पंरपरागत भावनाओं एवं धारणाओं को भाजपा ने अपने शासनकाल में सत्ता के अंहकार से कुचला है।