चुनाव जीतने के लिए नेता सामाजिक रिश्तें को भी दांव में लगाने से परहेज नही कर रहे
बंगाल हिंसा पर सवाल उठाने वालों को उस वक्त भी सवाल उठना चाहिए था जब भाजपा नेता चुनाव प्रचार के दौरान खूले आम उत्तेजित करने वाले बयान सभाओं में दे रहे है, उस वक्त किसी नेता ने भी सवाल नही उठया कि राजनीति हितों के लिए लोगों के बीच इस तरह के भाषण नही देना चाहिए। चुनाव के बाद बंगाल में हुई हिंसा ठीक नही है, परंतु नेताओं को अपने भाषणों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए, ताकि जनता मेंंं बीच भाई चारा की डोर ना टूटने पाये।
बंगाल की चुनावी सभा में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री व भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि टीएमसी के गुंडे दो मई के बाद जान की भीख मांगेंगे, उनके इस उत्तेजक बयान की किसी भी नेता द्वारा निंदा नही की गयी, क्योकि उस वक्त धु्रवीकरण की राजनीति को बढ़ावा देना था। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष दिलीप घोष ने भी धमकी देते हुए कहा था कि हमने हाथ-पांव चलाए तो बैंडेज कम पड़ जायेगें, उनके बयान पर भी किसी भी भाजपा नेता ने सवाल नही उठाये। चुनावी सभाओं ने भाजपा नेताओं ने कहा कि टीएमसी के मतदाता घुसपैठियां है यह तक कहा, जिससे आम जनता में तनाव ही पैदा हुआ। सवाल यह है कि चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से बंगाल में भाजपा नेताओं के अपने भाषणों से तनाव फैला कर बंगाल में लोगों के बीच के भाईचारे को तोडऩे का प्रयास किया, उस पर सवाल उठना चाहिए क्योकि सत्ता आती जाती रहती है लेकिन लोगों के बीच भाईचारा बना रहना चाहिए। इन दिनों चुनाव में नेता ऐसी बयानबांजी करते है जैसे की वह कोई दुश्मन है जो जितना विवादित बयान देता है वह उतना बड़ा स्टार प्रचारक होता है। इस पर रोक लगनी चाहिए, अन्यथा चुनावी हिंसा पर लगाम लग पाना मुश्किल काम है। चुनाव परिणाम के बाद भाजपा नेता हिंसा पर सवाल तो उठा रहे है लेकिन नेताओं के बयानों पर भी सवाल उठाये गये होते और लगाम लगाई गई होती तो इस तरह के हालात ही पैदा नही होते। बंगाल हिंसा पर भी आरोप प्रत्यारोप की राजनीति अपने चरम पर है, टीएमसी और भाजपा दोनों एक दूसरे को इस हिंसा के लिए जिम्मेदार बता रहे है।